03-05-84  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

परमात्मा की सबसे पहली श्रेष्ठ रचना - ब्राह्मण

दिलाराम बापदादा अपने ब्राह्मण बच्चों प्रति बोले:-

आज रचता बाप अपनी रचना को, उसमें भी पहली रचना ‘ब्राह्मण’ आत्माओं को देख रहे हैं। सबसे पहली श्रेष्ठ रचना आप ब्राह्मण श्रेष्ठ आत्मायें हो, इसलिए सर्व रचना से प्रिय हो। ब्रह्मा द्वारा ऊँचे ते ऊँची रचना - मुख वंशावली महान आत्मायें, ब्राह्मण आत्मायें हो। देवताओं से भी श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मायें गाई हुई हैं। ब्राह्मण ही फरिश्ता सो देवता बनते हैं। लेकिन ब्राह्मण जीवन आदि पिता द्वारा संगमयुगी आदि जीवन है। आदि संगमवासी ज्ञानस्वरूप त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री ब्राह्मण आत्मायें हैं। साकार स्वरूप में साकारी सृष्टि पर आत्मा और परमात्मा के मिलन और सर्व सम्बन्ध के प्रीति की रीति का अनुभव परमात्म-अविनाशी खज़ानों का अधिकार, साकार स्वरूप से ब्राह्मणों का ही यह गीत है - हमने देखा हमने पाया शिव बाप को ब्रह्मा बाप द्वारा। यह देवताई जीवन का गीत नहीं है। साकार सृष्टि पर इस साकारी नेत्रों द्वारा दोनों बाप को देखना उनके साथ खाना-पीना, चलना, बोलना, सुनना, हर चरित्र का अनुभव करना, विचित्र को चित्र से देखना यह श्रेष्ठ भाग्य ब्राह्मण जीवन का है।

ब्राह्मण ही कहते हैं - हमने भगवान को बाप के रूप में देखा। माता, सखा, बन्धु, साज़न के स्वरूप में देखा। जो ऋषि मुनि, तपस्वी, विद्वान आचार्य, शास्त्र सिर्फ महिमा गाते ही रह गये। दर्शन के अभिलाषी रह गये। कब आयेगा, कब मिल ही जायेगा। इसी इन्तजार में जन्म-जन्म के चक्र में चलते रहे लेकिन ब्राह्मण आत्मायें फलक से, निश्चय से कहती, नशे से कहती, खुशी-खुशी से कहती, दिल से कहती - ‘हमारा बाप अब मिल गया’। वह तरसने वाले और आप मिलन मनाने वाले। ब्राह्मण जीवन अर्थात् सर्व अविनाशी अखुट, अटल, अचल सर्व प्राप्ति स्वरूप जीवन, ब्राह्मण जीवन इस कल्प-वृक्ष का फाउण्डेशन, जड़ है। ब्राह्मण जीवन के आधार पर वह वृक्ष वृद्धि को प्राप्त करता है। ब्राह्मण जीवन की जड़ों से सर्व वैराइटी आत्माओं को बीज द्वारा मुक्ति-जीवनमुक्ति की प्राप्ति का पानी मिलता है। ब्राह्मण जीवन के आधार से यह टाल-टालियाँ विस्तार को पाती है। तो ब्राह्मण आत्मायें सारे वैराइटी वंशावली की पूर्वज हैं। ब्राह्मण आत्मायें विश्व  के सर्व श्रेष्ठ कार्य का, निर्माण का मुहूर्त करने वाली हैं। ब्राह्मण आत्मायें ही अवश्मेध राजस्व यज्ञ, ज्ञान यज्ञ रचने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हैं। ब्राह्मण आत्मायें हर आत्मा के 84 जन्म की जन्मपत्री जानने वाली हैं। हर आत्मा के श्रेष्ठ भाग्य की रेखा विधाता द्वारा श्रेष्ठ बनाने वाली हैं। ब्राह्मण आत्मायें महान यात्रा - मुक्ति-जीवनमुक्ति की यात्रा कराने के निमित्त हैं। ब्राह्मण आत्मायें सर्व आत्माओं को सामूहिक सगाई बाप से कराने वाली हैं। परमात्म हाथ में हाथ का हथियाला बंधवाने वाली हैं। ब्राह्मण आत्मायें जन्म-जन्म के लिए सदा पवित्रता का बन्धन बाँधने वाली हैं। अमरकथा कर अमर बनाने वाली हैं। समझा - कितने महान हो और कितने जिम्मेवार आत्मायें हो! पूर्वज हो। जैसे पूर्वज वैसी वंशावली बनती है। साधारण नहीं हो। परिवार के जिम्मेवार वा कोई सेवा स्थान के जिम्मेवार - इस हद के की जिम्मेवार नहीं हो। विश्व की आत्माओं के आधार मूर्त हो। उद्धार मूर्त हो। बेहद की जिम्मेवारी हर ब्राह्मण आत्मा के ऊपर है। अगर बेहद की जिम्मेवारी नहीं निभाते, अपनी लौकिक प्रवृत्ति वा अलौकिक प्रवृत्ति में ही कभी उड़ती कला, कब चढ़ती कला, कब चलती कला, कब रूकती कला, इसी कलाबाजी में ही समय लगाते, वह ब्राह्मण नहीं लेकिन क्षत्रिय आत्मायें हैं। पुरूषार्थ की कमाल पर यह करेंगे, ऐसे करेंगे-करेंगे के तीर निशान-अन्दाजी करते रहते हैं। निशान-अन्दाजी और निशान लग जाए इसमें अन्तर है। वह निशान का अन्दाज करते रह जाते। अब करेंगे, ऐसे करेंगे। यह निशान का अन्दाज करते। उसको कहते हैं - क्षत्रिय आत्मायें। ब्राह्मण आत्मायें निशान का अन्दाजा नहीं लगातीं। सदा निशान पर ही स्थित होती हैं। सम्पूर्ण निशाना सदा बुद्धि में है ही है। सेकण्ड के संकल्प से विजयी बन जाते। बापदादा - ब्राह्मण बच्चे और क्षत्रिय बच्चे दोनों का खेल देखते रहते हैं। ब्राह्मणों का विजय का खेल और क्षत्रियों को सदा तीर कमान के बोझ उठाने का खेल। हर समय पुरूषार्थ की मेहनत का कमान है ही है। एक समस्या को समाधान करते ही हैं तो दूसरी समस्या खड़ी हो जाती। ब्राह्मण समाधान स्वरूप हैं। क्षत्रिय बार-बार समस्या को समाधान करने में लगे हुए रहते। जैसे साकार रूप में हँसी की कहानी सुनाते थे ना। क्षत्रिय क्या करत भये! इसकी कहानी है ना - चूहा निकालते तो बिल्ली आ जाती। आज धन की समस्या कल मन की, परसों तन की वा सम्बन्घ सम्पर्क वालों की। मेहनत में ही लगे रहते हैं। सदा कोई न कोई कम्पलेन्ट जरूर होगी। चाहे अपनी हो, चाहे दूसरों की हो। बापदादा ऐसे समय प्रति समय कोई न कोई मेहनत में लगे रहने वाले बच्चों को देख दयालु कृपालु के रूप से देख रहम भी करते हैं।

संगमयुग, ब्राह्मण जीवन दिलाराम की दिल पर आराम करने का समय है। दिल पर आराम से रहो। ब्रह्मा भोजन खाओ। ज्ञान-अमृत पियो। शक्तिशाली सेवा करो और आराम मौज से दिलतख्त पर रहो। हैरान क्यों होते हो। हे राम नहीं कहते। हे बाबा या हे दादी-दीदी तो कहते हो ना! हे बाबा, हे दादी-दीदी कुछ सुना। कुछ करो। यह हैरान होना है। आराम से रहने का युग है। रूहानी मौज करो। रूहानी मौजों में यह सुहावने दिन बिताओ। विनाशी मौज नहीं करना। गाओ, नाचो, मुरझाओं नहीं। परमात्म मौजों का समय अब नहीं मनाया तो कब मनायेंगे! रूहानी शान में बैठो। परेशान क्यों होते हो? बाप को आश्चर्य लगता है - छोटी-सी चींटी से परेशान हो जाते हो। क्योंकि शान से परे हो जाते तो चींटी बुद्धि तक चली जाती है। बुद्धियोग विचलित कर देती है। जैसे स्थूल शरीर में भी चींटी काटेगी तो शरीर हिलेगा, विचलित होगा ना। वैसे बुद्धि को विचलित कर देती है। चींटी अगर हाथी के कान पर जाती है तो मूर्छित कर देती है ना! ऐसे ब्राह्मण आत्मा मूर्छित हो क्षत्रिय बन जाती है। समझा क्या खेल करते हो! क्षत्रिय नहीं बनना। फिर राजधानी भी त्रेतायुगी मिलेगी। सतयुगी देवताओं ने खा-पीकर जो बचाया होगा वह क्षत्रियों को त्रेता में मिलेगा। कर्म के खेत का पहला पूर ब्राह्मण सो देवताओं को मिलता है। और दूसरा पूर, क्षत्रियों को मिलता है। खेत के पहले पूर की टेस्ट और दूसरे पूर में टेस्ट क्या हो जाती है, यह तो जानते हो ना! अच्छा-

महाराष्ट्र और यू.पी. जोन है। महाराष्ट्र की विशेषता है। जैसे महाराष्ट्र नाम है वैसे महान आत्माओं का सुन्दर गुलदस्ता बापदादा को भेंट करेंगे। महाराष्ट्र की राजधानी सुन्दर और सम्पन्न है। तो महाराष्ट्र को ऐसे सम्पन्न नामीग्रामी आत्माओं को सम्पर्क में लाना है। इसलिए कहा कि महान आत्मा बनाए सुन्दर गुलदस्ता बाप के सामने लाना है। अब अन्त के समय में इन सम्पत्ति वालों का भी पार्ट है। सम्बन्ध में नहीं, लेकिन सम्पर्क का पार्ट है। समझा!

यू.पी. में देश-विदेश में प्रसिद्ध वन्डर आफ दि वर्ल्ड ‘ताजमहल’ है ना! जैसे यू.पी. में वर्ल्ड की वन्डरफुल चीज़ है ऐसे यू.पी. वालों को सेवा में वन्डरफुल प्रत्यक्ष फल दिखाना है। जो देश विदेश में, ब्राह्मण संसार में नामीग्रामी  हो कि यह तो बहुत वन्डरफुल काम किया, वन्डरफुल आफ वर्ल्ड हो। ऐसा वन्डरफुल कार्य करना है। गीता पाठशालायें हैं, सेन्टर हैं, यह वन्डरफुल नहीं। जो अब तक किसी ने नहीं किया वह करके दिखायें तब कहेंगे - ‘वन्डरफुल’। समझा। विदेशी भी अब हाजर-नाज़र हो गये हैं, हर सीजन में। विदेश वाले विदेश के साधनों द्वारा विश्व में दोनों बाप को हाजर-नाज़र करेंगे। नाज़र अर्थात् इस नजर से देख सकें। तो ऐसे बाप को विश्व के आगे हाजर-नाज़र करेंगे। समझा विदेशियों को क्या करना है! अच्छा- कल तो सारी बारात जाने वाली है। आखिर वह भी दिन आयेगा - जो हेलीकाप्टर भी उतरेंगे। सब साधन तो आपके लिए ही बन रहे हैं। जैसे सतयुग में विमानों की लाइन लगी हुई होती है। अभी यहाँ जीप और बसों की लाइन लगी रहती। आखिर विमानों की भी लाइन लगेगी। सभी डर कर भागेंगे और सब कुछ आपको देकर जायेंगे। वह डरेंगे और आप उड़ेगे। आपको मरने का डर तो है नहीं। पहले ही मर गये। पाकिस्तान में सैम्पल देखा था ना - सब चाबियाँ देकर चले गये। तो सब चाबियाँ आपको मिलनी हैं। सिर्फ सम्भालना। अच्छा-

सदा ब्राह्मण जीवन की सर्व विशेषताओं को जीवन में लाने वाले, सदा दिलाराम बाप के दिलतख्त पर रूहानी मौज, रूहानी आराम करने वाले, स्थूल आराम नहीं कर लेना, सदा संगमयुग के श्रेष्ठ शान में रहने वाले, मेहनत से मुहब्बत की जीवन में लवलीन रहने वाले, श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’